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आजमगढ़: “जल संरक्षण का महत्व” विषय पर कार्यशाला का आयोजन हुआ



इं0 कुलभूषण सिंह ने जल संरक्षण के महत्व के सम्बन्ध में विद्यार्थियों को जागरूक किया

आजमगढ़ 21 सितम्बर-- आजमगढ़ महोत्सव-2023 के अन्तर्गत आज हरिऔध कला केन्द्र आजमगढ़ में “जल संरक्षण का महत्व” विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का संचालन राजकीय पालिटेक्निक आजमगढ़ के इं0 कुलभूषण सिंह द्वारा किया गया।
इं0 कुलभूषण सिंह ने जल संरक्षण तथा इसके महत्व के सम्बन्ध में उपस्थित छात्र-छात्राओं तथा आमजन को वीडियो क्लिप एवं पीपीटी के माध्यम से जागरूक किया गया। उन्होने कहा कि भू-जल हम सबकी बहुमूल्य धरोहर है। जल ही जीवन है, वर्षा जल का संचयन कर भू-जल संरक्षित करें। जल संरक्षण में ही जीवन सुरक्षित है तथा जल एक-एक बूंद बचाने का संकल्प लें। उन्होने कहा कि जल प्रकृति का यह अनुपम उपहार है, जिसके बिना जीवन को कल्पना ही नहीं की जा सकती है। किसी जीव या वनस्पति को वायु के बाद जल जीवन रक्षा के लिए अति आवश्यक है। यही कारण है कि विश्व की समस्त सभ्यताओं के विकास में जल की उपलब्धता का विशेष महत्व रहा है। पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति सर्वप्रथम जल से ही हुई। पृथ्वी का दो तिहाई भाग जल से घिरा है, फिर भी शुद्ध जल की मात्रा सीमित है और पृथ्वी में इसका विभाजन असमान है। वर्तमान में पृथ्वी पर मात्र 0.3 भाग ही साफ और शुद्ध जल रह गया है। महात्मा गाँधी जी ने कहा था, यह धरती हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा है, परन्तु हमारी लालचों के लिए नहीं।
उन्होने कहा कि जल के प्रति कोई भी जिम्मेदारी की भावना नही दिखाई देती है। अक्सर किसान अपने खेतों को जरूरत से ज्यादा सींचता है, जिसके चलते खेतों में पानी जमा हो जाता है। शहरों में नल खुले छोड़ दिये जाते हैं। बहुत सारी जगहों में पानी के नल भी नही है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अपने जल श्रोतों को प्रदूषित होने से बचाने के प्रयत्नों के साथ-साथ ही हमें पानी को संयमित उपयोग सीखना होगा। उन्होने सभी लोगों से कहा कि मंजन करते समय नल को सदैव बन्द रखें। कुल्ला करते समय ही नल खोलें। दाढ़ी बनाते समय नल खोलने के बजाय किसी बर्तन में पानी भर लें। स्नान करते समय शावर कम समय तक उपयोग करें। स्नान के समय साबुन व शैम्पू लगाते समय शावर को बन्द कर दें। बर्तन माँजते समय नल बन्द रखें, जब घुलना हो तभी नल खोलें। कपड़ों में साबुन इत्यादि लगाते समय नल बन्द रखें। कपड़ों को खंगालते समय नल बन्द कर दें। कपड़े धोने के पानी का इस्तेमाल फर्शों को रगड़ने और अन्य सफाई के कार्यों में करें। अपने परिवार की आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त आकारों में ही गीजर, घुलाई मशीन जैसी घरेलू मशीनरी लें। खाना पकाने में कम से कम पानी का प्रयोग करें। ढक्कन कस कर लगायें। टोटी के वाशर को बदलना सीखें, ताकि टोंटी से पानी न चू सके। जल संरक्षण की बात हमेशा ध्यान में रखें और घरेलू उपयोग में पानी को बचाने के अन्य तरीके सोचें। पानी के मीटरों को देखने की आदत डालें और यदि पानी का उपयोग सामान्य से अधिक मालूम होता हो तो पता लगाएं कि ऐसा क्यों हो रहा है।
इसी के साथ ही उन्होने कहा कि अपने बगीचे को अधिक पानी से न भरें। एक पर्याप्त वर्षा होने पर बगीचे को 15 दिन तक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। बगीचे में पानी प्रातः काल के समय दें, जब तापक्रम और हवा का वेग कम हो, ताकि वाष्पीकरण से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। अपने स्प्रिंकलर की दिशा ऐसी रखें, ताकि पानी आपके बगीचे की जमीन, झाड़ियों, पेड़ पौधों आदि को मिले, न कि पक्के क्षेत्र में। सार्वजनिक नलों को धीरे खोलें और इस्तेमाल करने के बाद बन्द कर दें। दूसरों के द्वारा खोले गए नलों को बन्द कर दें। जितनी जरूरत हो उतने ही पानी का इस्तेमाल करें। फसलों में पानी का उपयोग केवल वांछित समय पर आवश्यकता के अनुसार ही करें। सिंचाई प्रणाली का अच्छी तरह से रख-रखाव करें। ड्रिप एवं स्प्रिंकलर से शुद्ध जल का प्रयोग करें। जलाशयों के कोने में जमा पानी का फिर से इस्तेमाल करें।
उन्होने सभी का आह्वान किया कि आइये हम सब मिलकर अपने वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों के सुखद, समृद्ध, खुशहाल जीवन एवं स्वच्छ जल की सतत् उपलब्धता के लिए जल की सुरक्षा, संरक्षण एवं इसके उचित प्रबन्धन का संकल्प लेकर एक सार्थक पहल करें।
इस अवसर पर हाइड्रोलॉजिस्ट भूगर्भ जल विभाग श्री आनन्द प्रकाश, डीआईओ एनआईसी श्री चन्दन यादव सहित आमजन एवं भारी संख्या में विभिन्न स्कूलों के छात्र/छात्राएं उपस्थित रहे।

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