.

डिजिटल माध्यम बड़ी फिल्म एवं सिनेमा क्रांति के रूप में उभरकर सामने आ रहा है-रंजीत कपूर

आजमगढ़ : आज का दर्शक समझदार हो चुका है। अच्छे विषय की नेकनीयति से लिखीं एवं बनाई गईं फिल्मों को दर्शक मिल रहे हैं। फिल्म मेकिंग का दौर काफी हद तक बायोपिक पर स्थापित हो गया है लेकिन बायोपिक को सिनेमा के बाजारीकरण में बेचने के लिए काफी हद तक उस व्यक्ति विशेष (जिस पर बायोपिक बनाई जा रही है) की जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं में फिल्मी फ्लेवर दिया जा रहा है। बावजूद इसके वास्तविक संदेश जनता तक पहुंचे, इसका विशेष ध्यान भी रखा जा रहा है। फिल्म लेखक रंजीत कपूर ने मीडिया से वार्ता के दौरान ये बातें हाल ही में रिलीज अभिनेता संजयदत्त की बायोपिक फिल्म 'संजू' का उदाहरण देते हुए कही।
फेस्टिवल के प्रथम सत्र के पहले आयोजित प्रेसवार्ता में निर्माता-लेखिका सीमा कपूर, फिल्म लेखन के शीर्ष रंजीत कपूर, विश्व प्रसिद्ध कला समीक्षक एवं फेस्टिवल निर्देशक अजीत राय एवं फिल्म फेस्टिवल के संयोजक एवं मशहूर रंगकर्मी अभिषेक पंडित एवं ममता पंडित आदि मौजूद थे। रंजीत कपूर ने कहा कि फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन का डिजिटल माध्यम एक बड़ी फिल्म एवं सिनेमा क्रांति के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। अपने साथ कई सारी चुनौतियां लिए है तो बहुत सारी संभावनाएं भी साथ लिए है। उन्होंने कहा कि सार्थक सिनेमा, कला-सिनेमा, पैरेलल सिनेमा को फिल्मों के डिजिटल डिस्ट्रीब्यूशन का बहुत फायदा हो रहा है और भविष्य में भी होगा, क्योंकि अब डिजिटल प्लेटफार्म के माध्यम से आर्ट फिल्में दर्शकों तक पहुंचने लगी हैं। वेब सीरीज के दौर पर बात करते हुए उन्होंने कहा की अभिनेत्री सनी लियोनी की जीवन यात्रा पर बनाई उनकी बेटी की वेब सीरीज की सफलता अपने चरम पर है। उन्होंने कहा कि वह हमेशा सामाजिक सरोकार से जुड़े फिल्में लिखते हैं और सिनेमा को समाज सुधार का माध्यम मानते हैं।
फिल्म एवं टीवी सीरियल लेखक, निर्माता एवं स्व. ओमपुरी की पत्नी सीमा कपूर ने फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन के प्रथम सत्र में चलाई जाने वाली अपनी फिल्म 'हाट' को लेकर दर्शकों से अपने विचार साझा किए। किसी फिल्म के निर्माण का ख्याल लेखक-निर्माता के जेहन में कैसे आता है, जैसे प्रश्न के जवाब उन्होंने खुद की लिखी व निर्देशित फिल्म 'हाट' के उदाहरण से बताया।
उन्होंने बताया कि जिस वक्त वह अपनी जिंदगी के बुरे दौर से गुजर रहीं थीं और अपने पैतृक निवास झालावाड़, राजस्थान में वक्त गुजार रहीं थीं, उस वक्त उनकी ¨जदगी में एक वाकया हुआ जिसने उन्हें इस कदर झकझोर दिया कि वह अपने गमों की जुगाली करना (दोहराना) भूल समाज में व्याप्त दर्द को महसूस करने लगीं। निर्णय लिया कि वह इस विषय पर एक फिल्म बनाएंगी और फिल्म 'हाट' का स्वरूप सामने आया। उन्होंने बताया कि उनकी घरेलू नौकरानी ने बहुत परेशान होकर एक दिन उनसे पांच हजार रुपये उधार मांगे। तीन-चार घरों में काम करके 1000-1200 रुपये कमाकर परिवार व बच्चों का पोषण करने वाली इस महिला को आज अचानक पांच हजार रुपये क्यों चाहिए एवं ये इतने सारे पैसे चुकाएगी कैसे। अपने मन में उठ रहे सवालों को जब मैंने नौकरानी से पूछा तो उसका उत्तर सुनकर वह दंग रह गई कि आज भी महिलाओं की हालत ऐसी है। पुरुष प्रधान भारतीय समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति जिसमें एक औरत को शादी के बाद उसका पति पत्नी की मर्जी जाने बिना सिर्फ अपनी इच्छा से किसी दूसरे आदमी को बेच देता है। इस कुप्रथा को 'बैठना' बोलते हैं। यह कुप्रथा राजस्थान एवं मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र के अति निम्न तबके के समाज में पाई जाती है। उन्होंने बताया कि यदि हम सिनेमा निर्माता लेखक जागरूक होकर ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर काम करें, सिनेमा बनाएं और उसको जन-जन तक पहुचाएं तो निश्चित ही सिनेमा निर्माण सामाजिक सरोकार से जुड़ेगा और वास्तविक सिनेमा से समाज में सुखद परिवर्तन होगा। ऐसे फिल्म फेस्टिवल फिल्मों के निर्माण एवं सार्थक फिल्मों के दर्शकों को अपने तक लाने में सफल होगी। 

Share on Google Plus

रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

आजमगढ़ लाइव-जीवंत खबरों का आइना ... आजमगढ़ , मऊ , बलिया की ताज़ा ख़बरें।
    Blogger Comment
    Facebook Comment