आजमगढ़। जनपद के अतरौलिया थाना क्षेत्र से सटे 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बाबा गोविंद साहब अम्बेडकर नगर मेले की तैयारी जोरो पर चल रही है। मेले का उद्घाटन सप्ताहंत 28 नवम्बर को जिलाधिकारी अम्बेडकर नगर करेंगे। स्थानीय प्रशासन द्वारा तैयारी का जायजा लिया जा चुका है। बतादे कि श्री श्री 1008 बाबा गोविन्द साहब का जन्म अम्बेडकर नगर जिले के गांव नगपुर थाना जलालपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम पृथुधर द्विवेदी माता का नाम दुलारी देवी था। बाबा का बचपन का नाम गोबिन्द धर द्विवेदी था। इनके पूर्वज जमीदार, थे कहा जाता है कि इनके पिता और माता धार्मिक विचार से ओतप्रोत थे। इसी का प्रतिफल रहा कि बाल्यकाल से ही बाबा को शास्त्रों का ज्ञान एवं भगवत गीता के प्रवचन में प्रवीन थे। एक बार इन्ही के गांव के रामलाल नामक एक व्यक्ति जो प्रतिदिन भ गवत गीता का प्रवचन सुनने आता था लेकिन कुछ दिनों बाद वह आना बंद कर दिया । बाबा ने अपने शीशों से पूछा रामलाल कहा हैं तो शिष्यों ने बताया कि वह नहीं आयेंगे। इसके बाद बाबा स्वयं रामलाल से मिले रामलाल से न आने का कारण पूछा तो उसने उत्तर दिया कि जो आप प्रवचन में कहते है क्या वह सारी बाते सही हैं। तब बाबा ने रामलाल को अपने गुरू भीखा साहब के पास गाजीपुर जिले के भुड़कुड़ा गांव में ले गये और भीखा साहब से सारी बातोें को अवगत कराये। उन्होने कहा आप सभी चारो धाम की यात्रा कीजिए तत्पष्चात मैं प्रभु के दर्षन कराउंगा। यात्रोपरान्त वह गुरू भीखा साहब से मिले उनसे गुरू गुलाब साहब की समाधि को खोलकर देखने को कहा गया देखने पर उन्हे भगवान कृष्ण व बलराम का प्रतिबिम्ब दिखाई दिया। वे गुरू से दीक्षा लेकर घर के लिए चल दिये उनके गुरू ने कहा था जहां पर रात विश्राम करोगे वही स्थान तुम्हारी तपोस्थली बन जायेगी। बाबा सायंकाल में बूढी गंगा नदी के किनारे 400बिघवा नामक जंगल में पहुंचे वहीं पर बाबा ने 150 वर्षो तक शेरशाह सूरी के शासन काल में अपने जप का तप दिखाया। लोगों का कहना है कि जब बाबा यहां आये तो इस जंगल में कोई नहीं आता था। एक बार एक सेठ अपनी नाव द्वारा यात्रा कर रहा था उसकी नाव डूबने लगी उसने बाबा का स्मरण किया स्मरणो उपरान्त उसकी नौका किनारे लग लगी उसने बाबा की तपोभूमि पर मन्दिर का निर्माण एवं पोखरी की मरम्मत करवायी। इसी तरह से बाबा के अनेक भक्तों ने उनकी तपो भूमि पर अलख जगाने का काम किया, कहा जाता है कि बाबा की समाधि संवत 1726 ई में अगहन हिन्दी माह शुक्ल पक्ष के दशमी के दिन ली। तभी से इसी तिथि को बाबा के स्थान पर दो माह के भव्य मेले का आयोजन होता है। जिस मेले में देश विदेश से दर्शनार्थी आते हैं इस मेले की विशेषता है कि बाबा के द्वारा निर्मित सरोवर में स्नान कर बाबा को खिचडी व बतासा,बाबा की समाधि पर चढाते हैं बाबा सबकी मुरादे पूरी करते हैं।मेले में विभिन्न प्रकार की दुकाने लकड़ी की निर्मित वस्तुओं से लेकर हाथी घोडे़ आदि की खरीदारी की जाती है ।लोगों का मानना है कि मेले में वस्तुएं सस्ती मिलती हैं,इस मेले की प्रसिद्ध मिठाईयां खजला है। मेले में आये हुए श्रद्धालुओं को थियेटरों में रूक कर रात •ार मेले का आनन्द लेते हैं। उक्त बातें बाबा के षिष्य रामचन्द्र साहब के शिष्य महन्त बाबा विरेन्द्र दास ने कही। जहां प्रतिवर्ष मेले में महीनों पहले से ही आप-पास की बाजारो में बुन्देलखण्ड व कानपुर से आये खजला व्यवसायिओं की दुकानें सज जाती थी। लेकिन पिछले वर्ष मंदी के चलते मेले में रौनक देखने को नहीं मिली। खजला व्यवसायी सुबाष ने बताया कि जीएसटी लागू होने से कच्चे माल की खरीदरारी मंहगी हो रही है। जिससे व्यापार बाधित है। गुलाब थियेटर के मालिक ठाकुर प्रसाद ने कहा कि इस क्षेत्र के दो प्रसिद्ध मेले हैं दुवार्सा व गोविन्द साहब का मेला, दुर्वास का मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है।
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