आजमगढ। आचार्य हरिहर कृपालु त्रिपाठी ने कुरहंस आश्रम पर भक्त जनों को सम्बोधित करते हुए शिक्षा के महत्व पर प्रकाश पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा की बच्चों को किताबी और और आज की स्कूलों मे मिल रही शिक्षा के अलावा किसी ज्ञानी गुरू से दीक्षित और तत्वबोध से अवगत कराना बहुत आवश्यक है। तभी देश और समाज का भला होना संभव है। उन्होने चिंता व्यक्त करते कहा आज पठन पाठन के नाम पर अंधी दौड़ चल रही है। कुकुर मुत्ते की तरह अंगे्रजी स्कूलों की संख्यां दिन पर दिन बढ़ रही है। अभिभावकों में भी वहां दाखिले के लिए होड़ मची है। लेकिन बच्चों को वहां वह वातावरण या शिक्षा नहीं मिल रही है जो हमारे पूर्वजों को मिली थी। आज वातावरण दूषित हो रहा है। मध्यान्ह भोजन न मिले तो सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बिल्कुल ही घट जाय, वहां पठन पाठन पर वहां किसी का ध्यान नहीं है। उन्होने कहा देश को महान बनाने के लिए शिक्षा के साथ बच्चों को दीक्षित होना बहुत आवष्यक है तभी देश और समाज के प्रति उनमें दायित्व बोध हो सकता है। पदम् श्री आचार्य त्रिपाठी ने कहा कृष्ण सुदामा ने एक टाट पर बैठ कर साथ शिक्षा ग्रहण किया था। एक राज संतान तो दूसरा असहाय पर वह उस समय की शिक्षा और दीक्षा ही थी कि वे जब मुठठी भर चावल लेकर कृष्ण के वैभव शाली महल में पंहुचे तो कृष्ण स्वयं बाहर निकल कर उनकी अगवानी को पंहुचे। क्या आज की शिक्षा में उसकी कल्पना की जा सकती है। रामचन्द्र जी को शिक्षा के लिए विश्वमित्र जी के सुपुर्द किया गया। क्या उन्हें आश्रम वे सुख सुविधाएं मिली जो राजमहल में मिलती रही। लेकिन समाज और देश की उच्च परंपरा को ध्यान में रखते उन्हें साधारण से आश्रम में दीक्षित होने के लिए भेज गया था। हम दूसरे देशों का अंधाधुन्ध अनुकरण कर रहें हैं। अपनी सामर्थ्य के अनुसार संतान के लिए अभिभावकों में नामचीन अंग्रेजी स्कूलों में दाखिले के लिए होड़ मची है। ऐसी पीढ़ी में तत्व बोध और दीक्षित न होने के कारण वे संवेदनहीन हो जाते हैं तिजोरी भरना उनका अभीष्ट रहता है। उस भीड़ में गिनती के कुछ ऐसे मिलेगें जिनमें समाज के वंचित और असहाय लोगों के लिए करूणा का भाव दिखे और उनके लिए कुछ करने का प्रयास करें। उन्होनें उदाहरण देते कहा एक आईएएस को जब जिलाधिकारी बनाकर भेजा जाता है तो उसके चेहरे पर अचानक रौनक आ जाती है। जिले में पोस्टिंग बनी रहे उसके लिए वे कुल करम करते है। पर सचिवालय के लिए तबादला होने की खबर मिलने सारी खुशी काफूर हो जाती है। आज गिनती के अधिकारी ऐसे मिलेगें जिनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं होती उन्हें चाहे यहां तैनात रखों चाहे वहां। ऐसा इसलिए कि ये संस्कारिक हैं और कहीं से न कहीं से दीक्षित हैं। समाज के लिए कुछ अच्छा करना उनका लक्ष्य है। उन्हें सरकार जिले में रखे चाहे सचिवालय में या और कहीं इससे उनको फर्क नहीं पड़ता।
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