आजमगढ़ : प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में 3 जून 1857 को पहली बार आज़ाद आजमगढ़’ गोष्ठी दिनांक 3 जून 2016 ,दिन-शुक्रवार समय 10 बजे दिन में स्थान-नेहरू हाल कलेक्ट्री कचहरी ,आजमगढ़ में मनायी जायेगी।
10 मई 1857 को मेरठ से उठने वाली क्रान्ती की ज्वाला ,जिसने पूरे उत्तर भारत को अपने आगोश में ले लिया ,कोई अनायास पैदा हुई घटना नहीं थी। भारत में कम्पनी राज आने के साथ ही देशी रियासतों को हड़पने ,उनसे मनमाना कर वसूलने ,उनके अधिकार छीनने के साथ-साथ देश में निरंतर प्र्रगति कर रहे कुटी उद्योग ,कपड़ा उद्योग आदि के बर्बाद करने के कारण देष की जनता आक्रोशित थी। कम्पनी राज का दायरा जैसे-जैसे बढ़ता गया देश के अधिकाधिक लोग उनके अत्याचार से पीड़ित होते गए। किसान ,बुनकर ,व्यापारी भी असंतुष्ट हो गये थे क्योंकि उससे उनकी जीविका तबाह हो चुकी थी। देशी फौजियों के साथ भेद-भाव चरम पर था। लोगों के सामने उनके प्रिय राजाओं के अधिकार छीने गए ,उन्हें अपमानित कर बंदी बनाया गया ,जिसके विरूद्ध लोगों के दिलों में बगावत के उचित अवसर की तलाश थी ,जिसकी शुरूआत मेरठ से भले हुई पर अवध के और विशेष रूप से पूर्वांचल के लोगों ने अपनी जबरदस्त भागीदारी निभाई और फिरंगियों के पैर उखाड़ दिए। यह पूर्वांचल के आजमगढ़ की ही धरती थी जहाॅ 3 जून को बगावत की शुरूआत हुई। अंग्रेजी खजाने का 7 लाख लूटा गया ,जेल का फाटक तोड़कर कैदियों को आजाद कराया गया ,जिसकी खबर से आजमगढ़ के आस-पास के जिलों यथा-बनारस ,गोरखपुर ,इलाहाबाद ,जौनपुर ,फैजाबाद ,सुल्तानपुर आदि में क्रान्ति की ज्वाला धधक उठी। केन्द्रीय नेतृत्व के अभाव ,कुछ देशी राजाओं की अपने स्वार्थ के लिए गद्दारी के कारण क्रान्तिकारियों के मंसूबे पूरे नहीं हो सके ,पर इस बगावत ने अंग्रेजोें को उस सच्चाई से रूबरू कराया जिसकी उन्हें कल्पना नहीं थी। वह थी-बोली भाषा ,खान-पाना ,रहन-सहन की मित्रताओं के बावजूद हिन्दू ,मुस्लिम जनता की अटूट एकता। इसी एकता के बल पर कम्पनी राज के खिलाफ लम्बा संघर्ष किया जा सका जो लगभग डेढ़ वर्ष तक चलता रहा। 1857 की क्रान्ति के दौरान भी अंग्रेजों ने हिन्दुओं व मुसलमानों के बीच तफरका पैदा करने की बहुत कोशिश की पर उसमें वे कामयाब नहीं हो सके।
आयोजकों ने सभी से अपील की है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 3 जून 1857 के आजमगढ़ के ऐतिहासिक महत्व को याद करने और साम्प्रदायिक एकता के मिसाल की प्रासंगिकता को जन-जन में आत्मसात कराने के उद्देश्य से आयोजित विचार गोष्ठी में अपनी सहभोगिता सुनिश्चित करें।
10 मई 1857 को मेरठ से उठने वाली क्रान्ती की ज्वाला ,जिसने पूरे उत्तर भारत को अपने आगोश में ले लिया ,कोई अनायास पैदा हुई घटना नहीं थी। भारत में कम्पनी राज आने के साथ ही देशी रियासतों को हड़पने ,उनसे मनमाना कर वसूलने ,उनके अधिकार छीनने के साथ-साथ देश में निरंतर प्र्रगति कर रहे कुटी उद्योग ,कपड़ा उद्योग आदि के बर्बाद करने के कारण देष की जनता आक्रोशित थी। कम्पनी राज का दायरा जैसे-जैसे बढ़ता गया देश के अधिकाधिक लोग उनके अत्याचार से पीड़ित होते गए। किसान ,बुनकर ,व्यापारी भी असंतुष्ट हो गये थे क्योंकि उससे उनकी जीविका तबाह हो चुकी थी। देशी फौजियों के साथ भेद-भाव चरम पर था। लोगों के सामने उनके प्रिय राजाओं के अधिकार छीने गए ,उन्हें अपमानित कर बंदी बनाया गया ,जिसके विरूद्ध लोगों के दिलों में बगावत के उचित अवसर की तलाश थी ,जिसकी शुरूआत मेरठ से भले हुई पर अवध के और विशेष रूप से पूर्वांचल के लोगों ने अपनी जबरदस्त भागीदारी निभाई और फिरंगियों के पैर उखाड़ दिए। यह पूर्वांचल के आजमगढ़ की ही धरती थी जहाॅ 3 जून को बगावत की शुरूआत हुई। अंग्रेजी खजाने का 7 लाख लूटा गया ,जेल का फाटक तोड़कर कैदियों को आजाद कराया गया ,जिसकी खबर से आजमगढ़ के आस-पास के जिलों यथा-बनारस ,गोरखपुर ,इलाहाबाद ,जौनपुर ,फैजाबाद ,सुल्तानपुर आदि में क्रान्ति की ज्वाला धधक उठी। केन्द्रीय नेतृत्व के अभाव ,कुछ देशी राजाओं की अपने स्वार्थ के लिए गद्दारी के कारण क्रान्तिकारियों के मंसूबे पूरे नहीं हो सके ,पर इस बगावत ने अंग्रेजोें को उस सच्चाई से रूबरू कराया जिसकी उन्हें कल्पना नहीं थी। वह थी-बोली भाषा ,खान-पाना ,रहन-सहन की मित्रताओं के बावजूद हिन्दू ,मुस्लिम जनता की अटूट एकता। इसी एकता के बल पर कम्पनी राज के खिलाफ लम्बा संघर्ष किया जा सका जो लगभग डेढ़ वर्ष तक चलता रहा। 1857 की क्रान्ति के दौरान भी अंग्रेजों ने हिन्दुओं व मुसलमानों के बीच तफरका पैदा करने की बहुत कोशिश की पर उसमें वे कामयाब नहीं हो सके।
आयोजकों ने सभी से अपील की है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 3 जून 1857 के आजमगढ़ के ऐतिहासिक महत्व को याद करने और साम्प्रदायिक एकता के मिसाल की प्रासंगिकता को जन-जन में आत्मसात कराने के उद्देश्य से आयोजित विचार गोष्ठी में अपनी सहभोगिता सुनिश्चित करें।
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