जानिये भाजपा ने किस गणित के तहत रमाकांत की जगह निरहुआ को बनाया प्रत्याशी
आजमगढ़: विपक्ष भले ही यह माने तो दावे कर रहा हो कि बीजेपी प्रत्याशी अखिलेश के सामने हवा साबित होगा और गठबंधन रिकार्ड मतों से जीत हासिल करेगा लेकिन जातीय समीकरण पर ध्यान दे तो अखिलेश की राह उतनी आसान नहीं दिखती जितनी सपा -बसपा गठबंधन के लोग मान रहे हैं। खासतौर पर कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी न खड़ा करने की स्थित में। भाजपाइयों ने भी शायद इसी गणित को देखते हुए रमाकांत के बजाय फिल्म स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ पर दांव लगाया गया है।वर्तमान हालात पर गौर करें तो यादव और मुस्लिम सपा का वोट बैंक माना जा रहा है जबकि मायावती भी दलित के साथ ही मुस्लिम मतदाताओं को पर अपना दावा करती रही है। गठबंधन के बाद यह तीनों जातियां सीधे तौर पर अखिलेश यादव के साथ मानी जा रही है। हालांकि कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है लेकिन चुनावी पंडितों के अनुसार आजमगढ़ संसदीय सीट पर इनकी तादात और वोट प्रतिशत पर गौर करें तो यहां यादव की संख्या 19 प्रतिशत, दलित हरिजन 16 प्रतिशत व मुस्लिम 14 प्रतिशत है। इस हिसाब से गठबंधन का दावा 49 प्रतिशत लोगों पर है। यहां 1770635 मतदाता है। अगर 49 प्रतिशत मतदाता को गठबंधन के साथ मान लिया जाय तो इनके साथ 867609 मतदाता सीधे तौर पर जाते दिख रहे हैं। जबकि शेष बचे 903026 मतदाता पर बीजेपी अपना दावा कर रही है। कारण कि पिछले दो चुनाव में सवर्ण के साथ ही अति दलित, अति पिछड़ा पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष के लामबंद रहा है। रमाकांत यादव को सवर्ण पूरी तरह वोट नहीं करता था। बीजेपी ने प्रत्याशी बदल इनकी नाराजगी को दूर कर दिया है। वैसे राजनीति के जानकारों की माने तो यादव, दलित व मुस्लिम के अलावा कुछ प्रतिशत अन्य जातियों के मतदाता अखिलेश के साथ जा सकते है। लेकिन यह कितना प्रतिशत होगा परिणाम उसी पर निर्भर करेगा। अभी लड़ाई बराबर की नजर आ रही है। कारण कि दोनों प्रत्याशी बाहर के हैं और दोनों की जनता के बीच पैठ है। अखिलेश राजनेता के रूप में जाने जाते हैं लेकिन जातिगत आधार पर मतदाता बटा हुआ है। वहीं निरहुआ की पहचान एक कलाकार के रूप में है जो थोड़ी ही सही लेकिन समाज के सभी तबकों में अपनी फिल्मों के जरिए पहुंच रखता है। उसके खिलाफ अभी किसी तरह की नकारात्मक भावना भी लोगों के भीतर नहीं है। ऐसे में अगर बीजेपी के लोग अपनी गुटबाजी छोड़कर पूरी ताकत के साथ निरहुआ के प्रचार में जुटते है तो निश्चित तौर पर आजमगढ़ का चुनाव वैसे ही दिलचस्प वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला थाके जैसा दिलचस्प होगा।
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